गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

ध्वस्त होता ट्राफिक! सिपाहियों को है न फिक्र

ध्वस्त होता ट्राफिक! सिपाहियों को है न फिक्र

कानपुर। भाइयों आपने एक कहावत तो सुनी ही होगी 'एक अनार, सौ बीमार'। शहर के यातायात की भी कुछ यही स्थिति है। यहां ट्राफिक सिपाहियों से दो गुने तो चौराहे हैं। अब इस स्थिति में यातायात व्यवस्था सुधरे भी कैसे? लगभग पिछले कुछ वर्षों से यह समस्या है पर प्रशासन है कि सिपाहियों की नयी भर्ती करता ही नहीं है। अब जितने सिपाही हैं उससे दो गुने होमगार्डों को शामिल कर शहर के चौराहों पर तैनात किया जाता है जिससे शहर की यातायात व्यवस्था को नियंत्रित किया जा सके। अब जिन चौराहों पर ट्राफिक पुलिस या होमगार्डों के जवान नहीं तैनात होते हैं वहीं से यातायात व्यवस्था ध्वस्त होने लगती है।
शहर मे बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण ध्वस्त हो चुकी यातायात व्यवस्था हैं। जिसके बारे में रोज नये नये समीकरण बनाये जाते हैं परन्तु चंद दिनों के बाद वो सभी समीकरण फेल हो जाते हैं। कुछ गिनें चुनें प्रमुख चौराहो के अलावा पूरे कानपुर में यातायात व्यवस्था का कोई उदाहरण देखने को नहीं मिलता हैं। जिन छोटे चौराहों तथा नाकों पर यातायात व्यवस्था रखी गई हैं। वहां ट्रैफिक पुलिस, सिपाही व होमगार्ड किसी पेंड़ की छांव में बैठें कर धूम्रपान का आनंद उठाते देखे जाते हैं। वो अपनी हरकत में तभी आते हैं जब वहां जाम लग जाता हैं या फिर उनको पता होता है कि कोई अधिकारी यहां से गुजरने वाला है। इसके बाद यातायात सामान्य हो जाने पर वो पुन: अपने आंनद में डूब जाते हैं।
यातायात व्यवस्था ध्वस्त होने का एक और मुख्य कारण यह भी है कि सिपाहियों और होमगार्डों को अपना जेब खर्च भी ड्यिूटी के समय निकालना होता है। ये लोग प्राय: उन नवजवान लड़कों की तलाश में रहते हैं जिनके पास कुछ पैसे होने की सम्भावना उनके लगती है या फिर नये वाहन होते हैं और उनको देखकर यह आभास होता है कि ये कम से कम १००-२०० दे सकता है। पहले तो ये लाइसेंस मांगते हैं, लाइसेंस होने पर गाड़ी के कागज मांगते हैं, वो भी हों तो गाड़ी का मीटर सही है या नहीं, गाड़ी की सभी लाइटें सही हैं या नहीं वगैरह-वगैरह....। कुछ भी करके उनको अपना खर्चा निकालना होता है। चूंकि सिपाहीगण इस काम में व्यस्त रहते हैं तो जिन चौराहों पर सिपाहियों की तैनाती होती है वहां भी जाम लगने लगता है। फिर ये कुछ अपनी हरकत में आ जाते हैं और ड्यिूटी पर तैनात दिखाई देने लगते हैं। पर कुछ समय के लिये। जाम कम होते ही ये फिर अपने-अपने काम में लग जाते हैं।
टैम्पो, विक्रम, ट्रैक्टर, ट्रक आदि जैसी गाडिय़ों का तो इनका फिक्स चार्ज होता है। अगर यहां से गुजरना है तो इतना...इतना...इतना देना है। अगर कोई टैम्पो दिन में चार बार एक स्थान से गुजरती है तो टैम्पो चालक को चार बार गैर कानूनी टैक्स (रिश्वत) देना होता है।
इस प्रकार से इनके पूरे दिन का शाही भोजन व खर्चवाहन चालक पूरा करते हैं। ये सरकार से वेतन केवल बैठने का और कामचोरी का लेते हैं।
अगर इसी तरह ये आंनद लेते रहेगें तो उन वाहन चालकों का क्या होगा जिन्हें ये भी नहीं पता कि अपने घर से मात्र २० किमी. जाने में वो अपने घर वापस सही सलामत आ पायेंगें या यातायात व्यवस्था की भेंट चढ़ जायेंगे।
रात लगभग दस के बाद नो इंट्री खुलने के ट्रक, टैण्कर जैसे बड़े वाहन इतनी तेजी से निकलते हैं कि अगर कोई सामने आ जाये तो वह बच नहीं सकता। उसको अपनी जान गंवानी पड़ती है। वह भी क्या करें अगर वह सामान्य गति अर्थात निर्धारित गति से चलेंगे तो उनको सिपाहीगण जगह-जगह पर रोक कर अपना गैर कानूनी टैक्स यानी रिश्वत वसूलते हैं। यह टैक्स प्रति वाहन २० से ५० रुपये तक होता है किसी-किसी से १०० तक मिल जाये तो कोई मनाही नहीं है। इनके २० रुपये, ५० रुपये के लालच में आम जनता को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। क्योंकि सिपाहियों से बचने के लिये यह जरूरत से ज्यादा तेजी से चलते हैं और ऐसी स्थिति में दुर्घटनाओं की सम्भावना बढ़ जाती है।
पता नहीं कब सुधरेगी यातायात व्यवस्था और शहर के यातायात को नियंत्रित रखने वाली ये कानून व्यवस्था। ऐसी स्थितियों में तो सड़क पर चलना सिर्फ भगवान भरोसे है।