मंगलवार, 30 जून 2009

देखो ! यह फास्ट ज़माना है...

भाई वाह क्या बात है...
पहले की बात कुछ और थी. लोग एक दूसरे की परवाह करते थे. एक दूसरे को समझते थे और अपना काम पूरी जिम्मेदारी से करते थे. चाहे भले ही अपना कीमती समय क्यों न बर्बाद करना पड़े.
लेकिन आजकल का समय तो ज़रूरत से ज्यादा फास्ट हो गया है. आजकल हर कोई ज़ल्दी में है.जिसको देखो सामने वाले को पीछे करता हुआ आगे निकलने की कोशिश में लगा रहता है. क्योंकि वो ज़ल्दी में होता है.
ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने और आगे बढ़ने की लालसा ने आदमी को मशीन बना दिया है. वह ज़रूरत से ज्यादा तेज़ चलने की कोशिश में लगा रहता है और इसी कारण कई लागों को नुकसान का सामना करना पड़ता है.
कानपुर शहर में गंगा किनारे बिठूर में एक रामधाम आश्रम बना है. वहां के एक बाबा जिनसे हम अच्छी तरह परचित है और उनसे अक्सर मिला करते है. पिछले हफ्ते मिले, आसन लगाये गंगा नदी के किनारे बैठे थे. मैंने प्रणाम कर उनसे पूछा की आप ये क्या कर रहे हो ?
बोले- बेटा! देखते नहीं हो, हम कुछ कुंडलिनी जाग्रत करने और कुछ सिद्धियां प्राप्त करने की कोशिश कर रहे है.
लेकिन आप काफी बूढे हो, आप सिद्धियों का क्या करोगे इस उम्र में,पूछने पर उनका ज़वाब था की - " बेटा समय बहुत फास्ट है. हम बहुत पीछे रह गए है और फिर से युवावस्था प्राप्त करना चाहते है. किसी बड़े मंदिर के महंत बनने की फिराक में है. अगर मौका मिला तो कुछ और भी....उनके पास कुछ किताबें भी रखी हुई थीं. पूछने पर बताया कि उनको पढने का अभ्यास कर रहे हैं और उनसे ज्ञान प्राप्त कर इस मोहमाया से आगे निकलने के लिए प्रयासरत हैं. अर्थात बड़े. (यानी अमीर बनने कि एक नै कोशिश....)
अब इन योगियों, महात्माओं और महापुरुषों तथा पंडितों को जो कि अपने को महराज भी कहलवाते है देख लीजिये. बहुत कम समय में बहुत कुछ करके बहुत कुछ पा लेते हैं. वह भी कुछ भोले- भाले लोगों को बेवकूफ बनाकर. क्योंकि वो ज़ल्दी में होते है.
अब अपने सरकारी प्राइमरी स्कूल के मास्टर साहब को ही ले लीजिये. एक तो कभी क्लास में आते ही नहीं हैं और आते भी हैं तो समय से क्लास में नहीं आते और फिर क्लास ख़त्म होने से पहले ही पढ़ना बंद कर देते है. क्योंकि वे अगली क्लास लेने की जल्दी में होते हैं और वहां भी ये वही क्रिया फिर दोहराते हैं.
सरकारी कर्मचारी जिनको कि सरकार ज़िम्मेदारी के पद पर कार्यरत करती है वे कर्मचारी पॉँच बजने से पहले ही ऑफिस से खिसक लेते हैं. क्योंकि वे घर जाने कि जल्दी में होते हैं. सुबह तो आने का समय होता ही नहीं है, जब इच्छा हुई तो आये वर्ना कौन देखता है कि कोई आया कि नहीं.
अपने ये जो नेतागण हैं, इनका तो कहना ही क्या है...जो विपक्ष के होते हैं बे ज़ल्द से ज़ल्द संसद भंग होने का इंतजार करते है. क्योंकि वे चुनाव कि ज़ल्दी में होते हैं.
अब अगर बात करें गाँव के किसान कि तो वह रोज़ नै तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है. क्योंकि उसको फसल काटने कि जल्दी में होता है. लेकिन ये जो बिजनेसमैन अर्थात व्यापारी होते हैं वे तो ज़ल्द से ज़ल्द लखपति, लखपति से करोड़पति बनने कि फिराक में ही रहते हैं. कहने का तात्पर्य यह है कि हर कोई आजकल ज़ल्दी में है.
एक सज्जन के यहाँ उनके पहले बेटे का जन्मदिन था. बच्चे को सूं - सूं करता देख उसकी माँ बोली - देखो बच्चा कितना साफ- साफ रोता है. आ इ इ इ इसे स्कूल में दल देते हैं, ई उ वहां सीख जायेगा. इतने में पिता कहाँ शांत रहने वाले थे उन्होंने ध्यान से सुनो बच्चे ने पंचम स्वर में रोया है. इसे संगीत सिखाते है. संगीत सीख कर ये हमारा नाम रोशन करेगा .
एक इंटरमीडीएट के छात्र से पूछा गया कि बेटा तुमने गणित क्यों ली ? कोई और विषय क्यों नहीं चुना ? वह गंभीरता से बोला, सर ! डॉक्टर बनते -बनते बूढे हो जायेंगे. गणित लेने का कारण यह है कि इक्कीस साल में इंजीनियर, कैम्पस और पगार....ठीक ही कहा उसने क्योंकि आजकल के बच्चे भी ज़ल्दी में हैं. एक दिन अचानक मेरे एक मामा जी मिल गए. बोले -" एक सप्ताह से कपालभांति कर रहा हूँ. वजन है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है." मैंने मन में सोंचा कि आपने चालीस साल खाया है , इसको पचास दिन तो करो. ज़ल्दी की तो मत पूछिये, जिसको देखो वही ज़ल्दी में है.
हर न्यूज़ पेपर और न्यूज़ चैनल में यही पढ़ने या सुनने को मिलता है की अमुक जगह अमुक व्यक्ति की हत्या या मृत्यु हो गयी. अब जिसकी मृत्यु हुई, क्यों हुई, क्योंकि वह ज़ल्दी में था. सामने से आ रहे ट्रक के निचे आकर मर गया. ट्रक वाले ने ब्रेक क्यों नहीं लगायी, क्योंकि वह भी ज़ल्दी में था. उसको कहीं और भी ज़ल्दी से पहुंचना था. अगर किसी की हत्या होती है है तो, हत्या क्यों हुई, क्योंकि वह ज़ल्दी में था इसलिए मारा गया. हत्यारा/ जिसने मारा वो भी ज़ल्दी में था. क्योंकि वह अमुक व्यक्ति की हत्या कर उसकी ज़मीन- जायदाद, धन- संपत्ति पाने की ज़ल्दी में था.
खैर ! यह ज़ल्दी का सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा.

खोता हुआ पतित पावन गंगा का अस्तित्व

आखिर कौन है जिम्मेदार...?

गंगा नदी हमारे जीवन का आधार व भारतीय - सभ्यता व धार्मिक आस्था का प्रतीक है. गंगा नदी को स्वर्ग से धरती पर लाने के लिए राजा भगीरथ ने बहुत घोर तप किया था. राजा के शापित पुत्रों को माँ गंगा ने शाप मुक्त कर मोक्ष प्रदान किया. लेकिन वही गंगा आज ग्लोबल वार्मिंग तथा मानवीय गतिविधियों और कुकृत्यों के कारण इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि उसका अस्तित्व खो सा गया है. पतित पावन गंगा को लालची और अज्ञानी मानव ने अपने हित के लिए विषैले पदार्थ उसमे बहाकर इसको प्रदूषित कर दिया है.
आज गंगा सहित कई नदियों पर बांध तथा सुरंगे बनाकर उन्हें तेजी से उजाडा जा रहा है. इस मानवीय कृत्य से भू-कटाव, भूस्खलन आदि की स्थितयां उत्पन्न हो रही हैं. इससे भूकंप की सम्भावना बढ़ सकती है.
आज उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजना पर काफी तेजी से कार्य हो रहा है. कई मायने में तथा बिजली के उत्पादन के आधार पर यह सही हो सकता है लेकिन पर्यावरण तथा स्वास्थ्य सहित कई सामाजिक मानकों के हिसाब से ये योजनायें स्थानीय जनता तथा पर्यावरण के लिए शुभ नहीं है. हमारा हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म का प्रत्येक व्यक्ति गंगा नदी में स्नान कर मोक्ष की कामना करता है. गंगा हमारी मनोकामना को पूर्ण करती है. लेकिन आज हमारे अमानवीय भूलों व विकास की अंधी दौड़ ने गंगा नदी के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है.
फैक्ट्रियों का गन्दा पानी तथा उनके उत्पादन से बचा हुआ अवशिष्ट पदार्थ जो कि गंगा नदी में बहा दिया जाता है. सीवर लाइन का पानी, उसका भी रास्ता कहीं न कहीं से गंगा नदी को ही मिला दिया जाता है. जिससे गंगा नदी दिन प्रतिदिन प्रदूषित होती जा रही है. यही कारन है कि गोमुख ग्लेशियर प्रतिवर्ष २० से ३० मीटर पीछे खिसक रहा है. यही हालत रहे तो वह दिन दूर नहीं जब यह नदी पूरी तरह सूख जायेगी. आज गंगा नदी कि स्थिति बहुत भयावह हो चुकी है. अगर बहुत जल्द इसके विषैले किये जाने पर कोई अंकुश नहीं लगाया गया तो गंगा नदी का नाम-ओ-निशान मिट जायेगा.
गंगा नदी के किनारे बसे शहरों और कस्बों की गंदगी, मल-मूत्र तथा फैक्ट्रियों का विषैला -जहरीला पदार्थ, अधजले मानव व मवेशियों के अवशेष आदि जगह-जगह डाले जाते हैं. धार्मिक आयोजनों तथा पूजा आदि करने का बाद अतिधार्मिक तथा सहिष्णु लोग अपनी पूजा सामग्री तथा कूड़ा -करकट आदि सब गंगा नदी में विसर्जित कर देते है. ये धार्मिक लोग अपने पापों का प्रायश्चित इन नदियों को गन्दा करके करते हैं. अब हालत यह है की गंगा नदी का पानी पीने लायक तक नहीं रह गया है. हरिद्वार में भी गंगा का पानी ठीक नहीं है, जिसको लोग पीने में हिचकिचाते है.
हमारे हिन्दू धर्म में गंगा नदी को पाप नाशिनी तथा मोक्षदायनी कहा गया है. हो भी क्यों नहीं ? गंगा नदी का जल कई वर्षों तक बोतल आदि में बंद करके रखने से ख़राब नहीं होता है. इसका मुख्य कारण यह है कि उत्तराखंड हिमालय से गंगा नदी में जड़ी-बूटियों के रासायनिक तत्व बह कर आते हैं. इसी कारण गंगा नदी का जल कई वर्षों तक ख़राब नहीं होता है. लेकिन आप यह काफी प्रदूषित हो चुकी है. गंगा नदी ही क्या ऐसी बहुत सी नदियाँ हैं जिनका पानी पीने लायक नहीं है. एक आंकलन के अनुसार उनमे से कई नदियों का अस्तित्व संकट में है. जिसमे गंगा नदी भी एक है.
एक अनुमान के अनुसार १९३५ से लेकर १९५० तक इस ग्लेशियर की पिघलने की दर सामान्य थी लेकिन १९५२ के बाद यह क्रम लगातार बढ़ता गया और सबसे अधिक १९९४ से २००८ के बीच यह ग्लेशियर पिघला. जिससे गंगोत्री ग्लेशियर प्रतिवर्ष २५ से ३० मीटर पीछे खिसक रहा है. अगर यही हाल रहा तो आने वाले बीस सालों में मध्य हिमालय से निकलने वाली छोटी-बड़ी नदियाँ सूख जाएँगी.
गंगा नदी की सफाई तथा प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए अब तक लगभग २० से २२ करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके हैं. लेकिन गंगा का प्रदूषण अभी तक कम नहीं हो पाया है. अगर समय रहते गंगा सहित तमाम नदियों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं है जब ये नदियाँ पूरी तरह सूख जाएँगी जिससे मानव सहित तमाम जीव -जगत का अस्तित्व भी संकट में पड़ जायेगा. क्योंकि नदियों के बिना हम अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकते हैं. इसलिए समय रहते ईमानदारी पूर्वक इस नदियों को बचाया जाना चाहिए. विकास की अवधारणा सकारात्मक होनी चाहिए, विकास के नाम पर प्रकृति को छिन्न- भिन्न करना नहीं है. हम विकास विरोधी बात नहीं कर रहे है लेकिन उस विकास से क्या फायदा जिससे मानवीय सभ्यता पर ही संकट मंडराता रहे.