पहले की बात कुछ और थी. लोग एक दूसरे की परवाह करते थे. एक दूसरे को समझते थे और अपना काम पूरी जिम्मेदारी से करते थे. चाहे भले ही अपना कीमती समय क्यों न बर्बाद करना पड़े.
लेकिन आजकल का समय तो ज़रूरत से ज्यादा फास्ट हो गया है. आजकल हर कोई ज़ल्दी में है.जिसको देखो सामने वाले को पीछे करता हुआ आगे निकलने की कोशिश में लगा रहता है. क्योंकि वो ज़ल्दी में होता है.
ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने और आगे बढ़ने की लालसा ने आदमी को मशीन बना दिया है. वह ज़रूरत से ज्यादा तेज़ चलने की कोशिश में लगा रहता है और इसी कारण कई लागों को नुकसान का सामना करना पड़ता है.
कानपुर शहर में गंगा किनारे बिठूर में एक रामधाम आश्रम बना है. वहां के एक बाबा जिनसे हम अच्छी तरह परचित है और उनसे अक्सर मिला करते है. पिछले हफ्ते मिले, आसन लगाये गंगा नदी के किनारे बैठे थे. मैंने प्रणाम कर उनसे पूछा की आप ये क्या कर रहे हो ?
बोले- बेटा! देखते नहीं हो, हम कुछ कुंडलिनी जाग्रत करने और कुछ सिद्धियां प्राप्त करने की कोशिश कर रहे है.
लेकिन आप काफी बूढे हो, आप सिद्धियों का क्या करोगे इस उम्र में,पूछने पर उनका ज़वाब था की - " बेटा समय बहुत फास्ट है. हम बहुत पीछे रह गए है और फिर से युवावस्था प्राप्त करना चाहते है. किसी बड़े मंदिर के महंत बनने की फिराक में है. अगर मौका मिला तो कुछ और भी....उनके पास कुछ किताबें भी रखी हुई थीं. पूछने पर बताया कि उनको पढने का अभ्यास कर रहे हैं और उनसे ज्ञान प्राप्त कर इस मोहमाया से आगे निकलने के लिए प्रयासरत हैं. अर्थात बड़े. (यानी अमीर बनने कि एक नै कोशिश....)
अब इन योगियों, महात्माओं और महापुरुषों तथा पंडितों को जो कि अपने को महराज भी कहलवाते है देख लीजिये. बहुत कम समय में बहुत कुछ करके बहुत कुछ पा लेते हैं. वह भी कुछ भोले- भाले लोगों को बेवकूफ बनाकर. क्योंकि वो ज़ल्दी में होते है.
अब अपने सरकारी प्राइमरी स्कूल के मास्टर साहब को ही ले लीजिये. एक तो कभी क्लास में आते ही नहीं हैं और आते भी हैं तो समय से क्लास में नहीं आते और फिर क्लास ख़त्म होने से पहले ही पढ़ना बंद कर देते है. क्योंकि वे अगली क्लास लेने की जल्दी में होते हैं और वहां भी ये वही क्रिया फिर दोहराते हैं.
सरकारी कर्मचारी जिनको कि सरकार ज़िम्मेदारी के पद पर कार्यरत करती है वे कर्मचारी पॉँच बजने से पहले ही ऑफिस से खिसक लेते हैं. क्योंकि वे घर जाने कि जल्दी में होते हैं. सुबह तो आने का समय होता ही नहीं है, जब इच्छा हुई तो आये वर्ना कौन देखता है कि कोई आया कि नहीं.
अपने ये जो नेतागण हैं, इनका तो कहना ही क्या है...जो विपक्ष के होते हैं बे ज़ल्द से ज़ल्द संसद भंग होने का इंतजार करते है. क्योंकि वे चुनाव कि ज़ल्दी में होते हैं.
अब अगर बात करें गाँव के किसान कि तो वह रोज़ नै तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है. क्योंकि उसको फसल काटने कि जल्दी में होता है. लेकिन ये जो बिजनेसमैन अर्थात व्यापारी होते हैं वे तो ज़ल्द से ज़ल्द लखपति, लखपति से करोड़पति बनने कि फिराक में ही रहते हैं. कहने का तात्पर्य यह है कि हर कोई आजकल ज़ल्दी में है.
एक सज्जन के यहाँ उनके पहले बेटे का जन्मदिन था. बच्चे को सूं - सूं करता देख उसकी माँ बोली - देखो बच्चा कितना साफ- साफ रोता है. आ इ इ इ इसे स्कूल में दल देते हैं, ई उ वहां सीख जायेगा. इतने में पिता कहाँ शांत रहने वाले थे उन्होंने ध्यान से सुनो बच्चे ने पंचम स्वर में रोया है. इसे संगीत सिखाते है. संगीत सीख कर ये हमारा नाम रोशन करेगा .
एक इंटरमीडीएट के छात्र से पूछा गया कि बेटा तुमने गणित क्यों ली ? कोई और विषय क्यों नहीं चुना ? वह गंभीरता से बोला, सर ! डॉक्टर बनते -बनते बूढे हो जायेंगे. गणित लेने का कारण यह है कि इक्कीस साल में इंजीनियर, कैम्पस और पगार....ठीक ही कहा उसने क्योंकि आजकल के बच्चे भी ज़ल्दी में हैं. एक दिन अचानक मेरे एक मामा जी मिल गए. बोले -" एक सप्ताह से कपालभांति कर रहा हूँ. वजन है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है." मैंने मन में सोंचा कि आपने चालीस साल खाया है , इसको पचास दिन तो करो. ज़ल्दी की तो मत पूछिये, जिसको देखो वही ज़ल्दी में है.
हर न्यूज़ पेपर और न्यूज़ चैनल में यही पढ़ने या सुनने को मिलता है की अमुक जगह अमुक व्यक्ति की हत्या या मृत्यु हो गयी. अब जिसकी मृत्यु हुई, क्यों हुई, क्योंकि वह ज़ल्दी में था. सामने से आ रहे ट्रक के निचे आकर मर गया. ट्रक वाले ने ब्रेक क्यों नहीं लगायी, क्योंकि वह भी ज़ल्दी में था. उसको कहीं और भी ज़ल्दी से पहुंचना था. अगर किसी की हत्या होती है है तो, हत्या क्यों हुई, क्योंकि वह ज़ल्दी में था इसलिए मारा गया. हत्यारा/ जिसने मारा वो भी ज़ल्दी में था. क्योंकि वह अमुक व्यक्ति की हत्या कर उसकी ज़मीन- जायदाद, धन- संपत्ति पाने की ज़ल्दी में था.
खैर ! यह ज़ल्दी का सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा.