आखिर कौन है जिम्मेदार...?
गंगा नदी हमारे जीवन का आधार व भारतीय - सभ्यता व धार्मिक आस्था का प्रतीक है. गंगा नदी को स्वर्ग से धरती पर लाने के लिए राजा भगीरथ ने बहुत घोर तप किया था. राजा के शापित पुत्रों को माँ गंगा ने शाप मुक्त कर मोक्ष प्रदान किया. लेकिन वही गंगा आज ग्लोबल वार्मिंग तथा मानवीय गतिविधियों और कुकृत्यों के कारण इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि उसका अस्तित्व खो सा गया है. पतित पावन गंगा को लालची और अज्ञानी मानव ने अपने हित के लिए विषैले पदार्थ उसमे बहाकर इसको प्रदूषित कर दिया है.
आज गंगा सहित कई नदियों पर बांध तथा सुरंगे बनाकर उन्हें तेजी से उजाडा जा रहा है. इस मानवीय कृत्य से भू-कटाव, भूस्खलन आदि की स्थितयां उत्पन्न हो रही हैं. इससे भूकंप की सम्भावना बढ़ सकती है.
आज उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजना पर काफी तेजी से कार्य हो रहा है. कई मायने में तथा बिजली के उत्पादन के आधार पर यह सही हो सकता है लेकिन पर्यावरण तथा स्वास्थ्य सहित कई सामाजिक मानकों के हिसाब से ये योजनायें स्थानीय जनता तथा पर्यावरण के लिए शुभ नहीं है. हमारा हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म का प्रत्येक व्यक्ति गंगा नदी में स्नान कर मोक्ष की कामना करता है. गंगा हमारी मनोकामना को पूर्ण करती है. लेकिन आज हमारे अमानवीय भूलों व विकास की अंधी दौड़ ने गंगा नदी के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है.
फैक्ट्रियों का गन्दा पानी तथा उनके उत्पादन से बचा हुआ अवशिष्ट पदार्थ जो कि गंगा नदी में बहा दिया जाता है. सीवर लाइन का पानी, उसका भी रास्ता कहीं न कहीं से गंगा नदी को ही मिला दिया जाता है. जिससे गंगा नदी दिन प्रतिदिन प्रदूषित होती जा रही है. यही कारन है कि गोमुख ग्लेशियर प्रतिवर्ष २० से ३० मीटर पीछे खिसक रहा है. यही हालत रहे तो वह दिन दूर नहीं जब यह नदी पूरी तरह सूख जायेगी. आज गंगा नदी कि स्थिति बहुत भयावह हो चुकी है. अगर बहुत जल्द इसके विषैले किये जाने पर कोई अंकुश नहीं लगाया गया तो गंगा नदी का नाम-ओ-निशान मिट जायेगा.
गंगा नदी के किनारे बसे शहरों और कस्बों की गंदगी, मल-मूत्र तथा फैक्ट्रियों का विषैला -जहरीला पदार्थ, अधजले मानव व मवेशियों के अवशेष आदि जगह-जगह डाले जाते हैं. धार्मिक आयोजनों तथा पूजा आदि करने का बाद अतिधार्मिक तथा सहिष्णु लोग अपनी पूजा सामग्री तथा कूड़ा -करकट आदि सब गंगा नदी में विसर्जित कर देते है. ये धार्मिक लोग अपने पापों का प्रायश्चित इन नदियों को गन्दा करके करते हैं. अब हालत यह है की गंगा नदी का पानी पीने लायक तक नहीं रह गया है. हरिद्वार में भी गंगा का पानी ठीक नहीं है, जिसको लोग पीने में हिचकिचाते है.
हमारे हिन्दू धर्म में गंगा नदी को पाप नाशिनी तथा मोक्षदायनी कहा गया है. हो भी क्यों नहीं ? गंगा नदी का जल कई वर्षों तक बोतल आदि में बंद करके रखने से ख़राब नहीं होता है. इसका मुख्य कारण यह है कि उत्तराखंड हिमालय से गंगा नदी में जड़ी-बूटियों के रासायनिक तत्व बह कर आते हैं. इसी कारण गंगा नदी का जल कई वर्षों तक ख़राब नहीं होता है. लेकिन आप यह काफी प्रदूषित हो चुकी है. गंगा नदी ही क्या ऐसी बहुत सी नदियाँ हैं जिनका पानी पीने लायक नहीं है. एक आंकलन के अनुसार उनमे से कई नदियों का अस्तित्व संकट में है. जिसमे गंगा नदी भी एक है.
एक अनुमान के अनुसार १९३५ से लेकर १९५० तक इस ग्लेशियर की पिघलने की दर सामान्य थी लेकिन १९५२ के बाद यह क्रम लगातार बढ़ता गया और सबसे अधिक १९९४ से २००८ के बीच यह ग्लेशियर पिघला. जिससे गंगोत्री ग्लेशियर प्रतिवर्ष २५ से ३० मीटर पीछे खिसक रहा है. अगर यही हाल रहा तो आने वाले बीस सालों में मध्य हिमालय से निकलने वाली छोटी-बड़ी नदियाँ सूख जाएँगी.
गंगा नदी की सफाई तथा प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए अब तक लगभग २० से २२ करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके हैं. लेकिन गंगा का प्रदूषण अभी तक कम नहीं हो पाया है. अगर समय रहते गंगा सहित तमाम नदियों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं है जब ये नदियाँ पूरी तरह सूख जाएँगी जिससे मानव सहित तमाम जीव -जगत का अस्तित्व भी संकट में पड़ जायेगा. क्योंकि नदियों के बिना हम अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकते हैं. इसलिए समय रहते ईमानदारी पूर्वक इस नदियों को बचाया जाना चाहिए. विकास की अवधारणा सकारात्मक होनी चाहिए, विकास के नाम पर प्रकृति को छिन्न- भिन्न करना नहीं है. हम विकास विरोधी बात नहीं कर रहे है लेकिन उस विकास से क्या फायदा जिससे मानवीय सभ्यता पर ही संकट मंडराता रहे.
मंगलवार, 30 जून 2009
खोता हुआ पतित पावन गंगा का अस्तित्व
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