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सोमवार, 3 अगस्त 2009

सरकार जिम्मेदार पर विभाग नहीं?


आम जनता की पहुंच से मीलों दूर 'मिड डे मिल'

परवाह तो अपनी है मासूमों की किसे है...


मिड डे मिल योजना सरकार की एक अति सराहनीय योजना एवं बहुउद्देशीय योजना है। लेकिन किसी योजना का लाभ उस अमुक व्यक्ति को मिल रहा है जिसको मिलना चाहिये, यह भी ध्यान में रखने का काम सरकारी विभाग के कर्मचारियों का है। उक्त योजना पर अमल हो रहा है या नहीं, कोई इसमें कोताई तो नहीं कर रहा है, ये सब देखना और इसमें हो रही धोखाधड़ी को रोकना सरकारी विभाग के कर्मचारियों की जिम्मेदारी है? लेकिन ऐसा नहीं कि यह सिर्फ सरकारी विभाग का ही काम है आम जनता को भी इसके काम में हो रही कोताही को रोकने का और उसकी लिखित शिकायत करने का अधिकार प्राप्त है।
1995 में मध्यान्ह भोजन योजना प्रारम्भ हुयी थी। उस समय प्रत्येक छात्र को इस योजना के अंतर्गत हर माह तीन किलोग्राम गेहूं या चावल उपलब्ध कराया जाता था। केवल खाद्यान्न उपलब्ध कराये जाने से बच्चों का स्वास्थ्य एवं उनकी स्कूल में उपस्थिति पर अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ा।
बच्चों को इस योजनान्तर्गत विद्यालयों में मध्यावकाश में स्वादिष्ट एवं रूचिकर भोजन प्रदान किया जाता है। इससे न केवल छात्रों के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है अपितु वह मन लगाकर शिक्षा ग्रहण भी कर पाते हैं। इससे बीच में ही विद्यालय छोडऩे (ड्राप आउट) की स्थिति में भी सुधार आया है। भारत सरकार द्वारा निर्देशित किया गया था कि बच्चों को समस्त प्रदेशों में मध्यान्ह अवकाश में पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराया जाये।
कतिपय कारणों से इस योजना के अंतर्गत पका-पकाया भोजन उत्तर प्रदेश में सितम्बर, 2004 तक नहीं दिया जा सका। विद्यालयों में पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराने के सम्बन्ध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका संख्या 196/2001 पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम् यूनियन आफ इण्डिया एवं अन्य में दिनांक 28-11-2001 को भारत सरकार को निर्देशित किया था कि 3 माह के अन्दर सरकार प्रत्येक राजकीय एवं राज्य सरकार से सहायता प्राप्त प्राइमरी विद्यालयों में पका पकाया भोजन उपलब्ध कराये। इस भोजन में 300 कैलोरी ऊर्जा तथा 8-12 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध होगा और यह भोजन वर्ष में कम से कम 200 दिनों तक उपलब्ध कराया जायेगा। माननीय न्यायालय ने यह भी निर्देशित किया है कि योजना के अंतर्गत औसतन अच्छी गुणवत्ता का खाद्यान्न उपलब्ध कराया जायेगा। उत्तर- प्रदेश में दिनांक 01 सितम्बर, 2004 से पका-पकाया भोजन प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराने की योजना आरम्भ कर दी गयी है। वर्तमान में भारत सरकार द्वारा मानकों में परिवर्तन करते हुए यह निर्धारित किया गया है कि उपलब्ध कराये जा रहे भोजन में कम से कम 450 कैलोरी ऊर्जा 12 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध हो। मध्यान्ह भोजन योजना कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य प्रदेश सरकार शिक्षा की विभिन्न योजनाओं में अत्यधिक पूंजी निवेश कर रही है। इस पूंजी निवेश का पूर्ण लाभ तभी प्राप्त होगा जब बच्चे कुपोषण से मुक्त होकर अपनी पूर्ण क्षमता से शिक्षा निर्बाध रूप से ग्रहण करते रहें। मध्यान्ह भोजन योजना इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण कड़ी है। सरकार का मानना है कि इस योजना के माध्यम से शिक्षा के सार्वभौमीकरण के निम्न लक्ष्यों की प्राप्ति होगी-

  1. प्राथमिक कक्षाओं के नामांकन में वृद्धि।
  2. छात्रों को स्कूल में पूरे समय रोके रखना तथा विद्यालय छोडऩे की प्रवृत्ति (ड्राप आउट) में कमी।
  3. निर्बल आय वर्ग के बच्चों में शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता विकसित करना।
  4. छात्रों को पौष्टिक आहार प्रदान करना।
  5. विद्यालय में सभी जाति एवं धर्म के छात्र-छात्राओं को एक स्थान पर भोजन उपलब्ध करा कर उनके मध्य सामाजिक सौहार्द, एकता एवं परस्पर भाई-चारे की भावना जागृत करना।